Agriculture Success Story : कम पानी और कम लगत से ऐसे करें सतावर की खेती

Agriculture Success Story कम पानी और कम लगत से ऐसे करें सतावर की खेती और कमाएं अच्छा मुनाफा : हमारा देश खेती के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ समय से देश में किसानों की हालात ठीक नहीं हैं। किसान परमपरागत खेती से ज्यादा मुनाफा नहीं हो पा रहा है जिसके चलते वो या तो खेती को छोड़ रहे हैं या किसी और तकनीक के दम पर खेती को आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं हाली में एक और तकनीक का पता चला है जिसको अपना कर किसान अपनी किस्मत बदल रहे हैं और ये तकनीक है इजराइल तकनीकी से औषधीय खेती को प्राथमिकता दे।

कम पानी और कम लगत से ऐसे करें सतावर की खेती और कमाएं अच्छा मुनाफा

Agriculture Success Story : कम पानी और कम लगत से ऐसे करें सतावर की खेती

Agriculture Success Story : कम पानी और कम लगत से ऐसे करें सतावर की खेती

जी हां, बताया जा रहा है कि इस बार अनुमान लगाया जाए तो करीब 100 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि पर नेपाली सतावर की पौध उगाए गए हैं। वहीं विशेषज्ञों के अनुसार हरियाणा में जुलाई से अगस्त तक सतवार की पौध उगाए गए हैं और पौधे को भी रोपित करना चाहिए। हालांकि पहाड़ी एरिया में किसान सितंबर में भी सतवार की पौध रोपित करते हैं। एक एकड़ में 36 इंच के 48 बैड बनाकर डब्ल्यू सेप में पौधे रोपित करने से ज्यादा लाभ मिलता है।

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Agriculture Success Story इसके अलावा बताया जाता है कि सतावर के पौधे से दूसरे पौधे की दूरी कम से कम 2 बाइ पौने 2 रखनी चाहिए। इसके अलावा एक एकड़ में करीबन 12 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। ताकि उनकी ग्रोथ अच्छी हो सके। सतावर की खेती में लागत भी परमपरागत खेती की अपेक्षा काफी कम आएगी। फिलहाल में हरिद्वार या हिमाचल के ऊना से किसान सलावर के पौध उगा रहे हैं। वहीं अगर इस पौध से कमाई की बात की जाए तो नर्सरी से एनसीआर में प्रति पौध पहुंचने का खर्च करीब 4 से साढ़े रुपए का आता है। वहीं अपनी नर्सरी तैयार करने पर प्रति पौध लागत करीब 2 से सवा दो रुपए आती है। एक एकड़ में करीब 36 हजार रुपए की पौध उगाए जाते हैं। वहीं उगाए के लिए लेबर का खर्च करीब प्रति एकड़ 6 हजार रुपए आता है।

Agriculture : नेपाली सतावर के साथ अन्य फसलें भी

बताया जाता है कि इस नेपाली सतावर को इजराइल तकनीकी के साथ उगाया जाता है, जिसमें 36 इंच के बैड बनाए जाते हैं। बैड के साइड में बची जगह पर आसानी से दलहनी या सब्जी की खेती कि जा सकती है, जिसमें मुंग, गोभी समेत कई फसले उगा सकते हैं।

पानी की लागत कम आती है

सतावर की खेती में पानी की लागत दूसरी फसलों के मुकाबलें काफी कम आती है, जो पानी दूसरी फसल में इस्तेमाल किया जाता है बस उसी की नमी से सतावर की पूर्ति भी हो जाती है। वहीं इस पौधे के लिए बाकी पौधे के मुकाबले नलाई-गुड़ाई भी कम करनी पड़ती है। इसके अलावा वो एक औषधीय फसल है जिसके चलते रोग लगने की संभवाना भी काफी कम रहती है, जिससे दवा या स्प्रे पर होने वाले कई खर्च नहीं होते। ऐसे कई किसान हैं जो नेपाली सतवार की पौध उगाते हैं।

Farming : सतावर के लिए उपयुक्त जलवायु

सतावर की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु सही होती है। इसके साथ ही जगह का तापमान 10-40 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। बताया जाता है कि सतावर की फसल में सूखे को सहन करने की अपार शक्ति होती है, लेकिन जड़ों के विकास के समय मिट्टी में नमी की कमी से इसकी खेती काफी प्रभावित होती है। इस लिए जड़ों में नमी बनाए रखना जरूरी है। सतावर की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक तत्व प्रचुर मात्रा में और पानी निकासी की सुविधा होनी चाहिए। इसके साथ ही बलुई मिट्टी से जड़ों को आसानी से बिना पौधे को बिना कोई नुकसान पहुंचाए खोद कर निकाला जा सकता है, जिससे किसान को ज्यादा लाभ मिलता है। इसके अलावा सतावर की मांसल जड़ें स्वाद में मधूर, रसायुक्त, कड़वी, भारी, चिकनी और तासिर ठंडी होती है। इस पौधे से कई तरह की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं।

Agriculture Success Story : मार्केट के उतार-चढ़ाव का असर नहीं

वहीं इस पौधे के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ. दिलबाग गुलिया बताते हैं कि नेपाली सतावर एक औषधीय फसल है। इसकी जड़ो को प्रोसेस करने के बाद तेल निकाला जाता है, जिसकी मांग बहुत ज्यादा होती है। इसी कारण फसल को रोपित करने के बाद कंपनी और किसान के बीच एक एमओयू साइन हो जाता है, जिससे मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसान पर कोई असर नहीं पड़ता। वहीं कुछ किसान सीधा मार्केट में भी बेचते है। जहां 30 से 50 रुपए प्रति किग्रा. का भाव मिलता है। वहीं प्रोसेस करने के बाद तेल का भाव 23 से 27 हजार रुपए प्रति लीटर मिलता है। फसल तैयार होने में 20 से 24 माह का समय लगता है। इस दौरान किसान सतावर के अलावा 4 सीजनल फसल भी आसानी से ले सकता है। जो एक अतिरिक्त आमदनी होती है।

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